एक आधुनिक मदरसा ऐसा भी
मंगलवार, 8 मार्च 2011
एक मदरसा जहां जन्नत का सा नजारा हे
कोटा के बोहरा समाज से जुड़े कई लोग और यहाँ के मुस्लिमों में भाईचारे का जो रिश्ता हे उसी रिश्ते के तहत इस जन्नत के नजारे को दिखाने के लियें बोहरा समाज से जुड़े आदरणीय अकबर भाई ,अब्बास भाई, मंसूर भाई , सफदर भाई ,अब्बास अली सहित समाज से जुड़े लोगों ने मुस्लिम भाइयों से पेशकश की पहले तो सभी लोगों ने सोचा कोई क्यूँ वक्त अपना बर्बाद करे न जाने कहां जायेंगे फिर सोचा के कुरान हिफ्ज़ करने का आधुनिक मदरसा हे हो सकता हे कुछ न्य मिल जाए , सो इसी मिजाज़ से कोटा से शहर काजी अनवार अहमद ,में अख्तर खान अकेला,जाकिर हुसैन रिज़वी ,शेख वकील साहब, नायब काजी जुबेर अहमद साहब ,लियाकत अली साहब , खलील इंजीनियर साहब को न्योता मिला बोहरा समाज के अनुशासन के तहत सभी के नाम वगेरा पहले हेड ऑफिस मुबई भेजे गये वहां जांच हुई और फिर सभी को जाने की विधिवत स्वीक्रति मिली ।
६ मार्च की शाम सभी लोगों को बोहरा समाज के अकबर भाई अब्बास भाई ,सफदर भाई ,मंसूर भाई और अब्बास अली साहब ने अलग अलग स्थानों से साथ लिया और फिर शुरू हुई महमान नवाजी की पराकाष्ठा ,खेर दुसरे दिन ७ मार्च को सुबह सभी लोग सुरत पहुंचे नहा धो कर सभी लोग पहले सूरत स्थित बोहरा समाज के मुख्य कार्यालय पहुंचे वहां इनके महा प्रबन्धक महोदय ने सभी का स्वागत किया ख़ुशी ज़ाहिर की और फिर गाइड की हेसियत से वहां के जानकारों को साथ रवाना कर दिया सबसे पहले हमने बोहरा समाज की सबसे बढ़ी और नायाब खुबसुरत मस्जिद जहां आदरणीय सयदना साहब की सम्भावित सोवीं सालगिरह की तय्यरियाँ चल रही थी वोह मस्जिद देखी इसी अहाते में मजारात थे मस्जिद के बारे में में अलग से विवरण लिखूंगा क्योंकि यह खुद एक मिसाल मस्जिद हे जिसमें विश्व के इस्लामिक देशों की संस्क्रती और पहचान को जिंदा कर दिया गया हे बस इसीलियें इसके लियिएँ अलग से पोस्ट लिखने का मन हे ।
हमें यहाँ से मदरसे में ले जाया गया फुल साउंड फ्रूफ, वातानुकूलित इंटीरियर डेकोरेशन में सर्व श्रेष्ठ इस मदरसे को देख कर हम सभी लोगों की आँखें चकाचोंध हो गयी सात सितारा होटल की सभी सुख सुविधाओं वाले अनुशासित इस मदरसे को देख कर हम चोंक गये ओरएक दुसरे की बगलें झाँकने लगे हमें एक कमरे में सुरक्षित तरीके से जूते उतरवाए गये फिर हम भवन में अंदर गये नीचे से उपर तक कालीन से सजा यह मदरसा जहां एक इको साउंड वाला एके बढा होल जिसमें खुबसुरत अंदाज़ में कुरान की आयतें लिखी गयी थी साथ ही वहां एक आकर्षक मंजर देने के लियें हरे भरे पेड़ गमले और वहां से नजारा देखने के लियें रोशन दान उपर महिलाओं के बेठने की पर्देदार खुबसूरत व्यवस्था और सय्यदना साहब की बैठक, छत पर कुरान की सूरतों की संख्या के अनुरूप ११४ किनारे बनाये गये थे जो एक कुरानी माहोल का एहसास करा रहे थे कुछ बच्चे कुरान हिफ्ज़ कर रहे थे इस इको साउंड में मदरसे के बहतरीन हाफ़िज़ ने खुबसुरत आयत में कुरान की तिलावत सुनाई फिर कोटा के नायब काजी जनाब जुबेर साहब से भी इस माहोले में कुरान की तिलावत सुनी गयी ,
आगे इस मदरसे की खुबसुरत बिल्डिंग में सजे संवरे छोटे छोटे कमरे जहां कुछ गिनती के छात्र ही बेठ कर कुरान सीख सकते हें ऐसा इसलियें क्या गया के कम बच्चों पर टीचर सही ध्यान दे सकेगा , कहते हें के मंजर अच्छा हो तो याद जल्दी होता हे और घंटों पढने पर भी आदमी बोर नहीं होता थकता नहीं हे बस इसी नजरिये को देखते हुए इस मदरसे में प्राक्रतिक सोंदर्य की छटा बिखेरने के लियें सूरज की रौशनी एक खुबसुरत गार्डन जिसमें घांस पोधे और पेढ़ छोटी सी नहर उसमें तेरती रंग बिरंगी मछलिया और चह चहाती चिड़ियें, माहोल को खुशनुमा बना रहे थे गाइड ने कहा के इस माहोल में बच्चों को जल्दी याद होता हे और जो चाहे वोह यहाँ बेठ कर इस खुशनुमा माहोल में अपना सबक याद कर सकता हे ।
इतना सब प्राक्रतिक सोंदर्य दिखाने के बाद हमें आधुनिकता की तरफ ले जाया गया बेसमेंट में अंदर बने भवन में कई कमरे थे जहां आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित स्टूडियो पहला स्टूडियो जहां बच्चों की आवाज़ जाँची जाती हे दुसरा स्टूडियो जहां प्राक्रतिक रूप से मटके में आवाज़ से पढना सिखाया जाता हे तीसरा स्टूडियों जहां बच्चे को आयने के सामने खड़ा कर खुद अपने अंदाज़ में सबक सीखने का हुनर सिखाया जाता हे वहीं ऐसे उपकरण जिन्हें कान में लगा कर खुद की आवाज़ फ्रीक्वेंसी और उतार चढाव खुद मास्टर बन कर बच्चा सीखता हे , आगे खुबसुरत स्टूडियो जो शायद भारत सरकार के आकाशवाणी स्टूडियो से भी आधुनिक साज सज्जा वाले बनाये गये थे ।
कुरान की तिलावत और कुरान हिफ्ज़ करने के इस अंदाज़ को जब हमने जांचा परखा तो हमने इस मदरसे में बच्चों की संख्या जानना चाहा तो हमें बताया गया के यहाँ ८५० लडके लडकियाँ हे जिनमें ३०० के लगभग लडकिया हें इतना सब खुबसुरत और आधुनिक नजारा देखने के बाद घंटों के इस सफर में हमें जरा भी थकान नहीं हुई हमारी आँखें यह मंजर देख कर खुली की खुली रह गयी और खुद बा खुद दिल से वाह निकलने लगी हमारे साथ गये बोहरा समाज के लोगों ने बताया के वोह सुरत तो कई बार आए हें लेकिन उन्हें यह सब नजदीक से देखने का पहली बार अवसर मिला हे हमारे साथ वोह भी गद गद थे हम सोचते रहे के अगर संकल्प हो अनुशासन हो विश्वास हो टीम भाव हो तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता एक ऐसा मदरसा जहां स्वर्ग जेसा नजारा और आधुनिक उपकरण बढ़ी बढ़ी युनिवर्सिटियों को मात देने के लियें काफी था ...................... दोस्तों यह नजारा खत्म नहीं हुआ इसके बाद जन्नत के इस नजारे में पढाई , अनुशासन का जो संगम हे उसका अगली पोस्ट में में विवरण दे सकूंगा बस इस मंजर को देख कर हम तो अब्बास भाई,अकबर भाई, मंजूर भाई ,सफदर भाई ओर अब्बास अली सहित सभी बोहरा समाज के ऋणी हो गये हम सय्यादना साहब के प्रति भी आभारी हो गये । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें