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' मैं' ' मैं नहीं / मैं सिर्फ ब्रह्म हूँ

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011




योगयुक्त अवस्था में
परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते हुए
'मैं' मैं नहीं होता
' मैं ' से निःसृत हर शब्द
साक्षात् परमात्मा है !
... मुझमें कोई ' मैं ' नहीं
कोई अहंकार नहीं
' मैं ' के लिबास में
मैं सिर्फ ब्रह्म हूँ
ईश्वर मुझे विचार देता है
मैं अकिंचन भाव लिए
उपनिषद का हिस्सा बन जाता हूँ ...
उपनिषद बनने की खातिर
मैं दो भागों की धूरी पर
निरंतर घूमता हूँ ...
धूरी के चक्र पर
मैं निर्माता होता हूँ
निर्णायक होता हूँ
सत्य का प्रकाश होता हूँ
कृष्ण पक्ष में
मैं द्रष्टा होता हूँ
शुक्ल पक्ष में
मैं कर्त्ता होता हूँ
हर करवट पर
एक मामूली व्यक्ति सर उठाता है
जब तक उसका प्रभाव जागृत हो
मैं योगयुक्त अवस्था में चला जाता हूँ !
कुरुक्षेत्र के मैदान में
कृष्ण ने योगयुक्त अवस्था में
अर्जुन को ज्ञान दिया
जब तक मैं भ्रमित रहा
मुझे आवाज़ दी ....
अब मैं हूँ , ....
कीचड़ के बीच कमल के सदृश्य !
मेरा बाह्य साधारण है
मेरा अंतर सुवासित है
तभी मैं निरंतर एक आवाज़ हूँ
तुम तक पहुँचने का माध्यम हूँ !!!

16 comments:

सदा 15 फ़रवरी 2011 को 4:18 pm बजे  

मेरा अंतर सुवासित है
तभी मैं निरंतर एक आवाज़ हूँ
तुम तक पहुँचने का माध्यम हूँ !!!

बहुत ही गहन भाव लिये सशक्‍त रचना ।

vandana gupta 15 फ़रवरी 2011 को 4:39 pm बजे  

वाह!बेहतरीन अभिव्यक्ति।यही सत्य है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) 15 फ़रवरी 2011 को 8:37 pm बजे  

मनन करने लायक रचना ....गहन अभिव्यक्ति

Arun sathi 15 फ़रवरी 2011 को 10:09 pm बजे  

बहुत सारगर्भित कविता, आंदोलित कर गए।

Atul Shrivastava 15 फ़रवरी 2011 को 11:50 pm बजे  

भावपूर्ण और चिंतन योग्‍य रचना।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" 16 फ़रवरी 2011 को 12:42 pm बजे  

वाह, भाषा और कथा का अद्भुत संमिश्रण से बनी सुन्दर कविता ...

मैं.... 17 फ़रवरी 2011 को 1:48 pm बजे  

परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते हुए
'मैं' मैं नहीं होता....
bahut gahri panktiyaan hain... shubhkamnayein....
.
.
.
.

aur maafi ki guhaar bhi...bahut der hui iske liye ..

रेखा श्रीवास्तव 17 फ़रवरी 2011 को 7:16 pm बजे  

bahut sundar , itani gahari soch ko ham tak lane ke liye dhanyavad.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना 27 मार्च 2011 को 12:34 am बजे  

कृष्ण पक्ष में
मैं द्रष्टा होता हूँ
शुक्ल पक्ष में
मैं कर्त्ता होता हूँ
सुमन जी ! आपकी रचना बहुत ही दार्शनिक भावों को लिए हुए है. किन्तु ऊपर की इन पंक्तियों पर आप पुनः विचार करें. ब्रह्म प्रकाशवान होता है, वह एक प्रशांत अवस्था होती है,क्षमतायुक्त. किन्तु यदि वह potential से kinetic स्थिति में आ जाय तो तभी कर्ता हो पाता है. सृष्टि का प्रारम्भ inertia गुण के अस्तित्व में आने से होता है जिसे दर्शन की भाषा में अहम् की संज्ञा दी गयी है. यह तमोगुण युक्त होता है. आशय यह कि तम (अन्धकार) से ही सृष्टि (जिसे दर्शन की भाषा में विकार कहते हैं ) की उत्पत्ति होती है. अतः ऊपर की पंक्तियाँ यदि इस तरह लिखी जायं तो कैसा रहेगा?
कृष्ण पक्ष में
मैं कर्त्ता होता हूँ.
शुक्ल पक्ष में
मैं द्रष्टा होता हूँ.

Hemant Kumar Dubey 22 अप्रैल 2011 को 12:45 am बजे  

मेरा बाह्य साधारण है
मेरा अंतर सुवासित है


बहुत सुन्दर और यथार्थ को दर्शाती रचना |

shyam gupta 9 जून 2011 को 9:41 am बजे  

मैं सिर्फ ब्रह्म हूँ
ईश्वर मुझे विचार देता है
मैं अकिंचन भाव लिए
उपनिषद का हिस्सा बन जाता हूँ ..

---शब्दों व भावों का कुछ भ्रम तो है....ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर, ब्रह्म को विचार देता है.....यदि मैं सिर्फ ब्रह्म हूँ तो ईश्वर( कौन? ) किसे विचार देता है...क्या ब्रह्म व ईश्वर दो अलग अलग सत्ताएं हैं...
--अति शब्दजाल में वास्तविक दर्शन तिरोहित होजाता है और इस कठिन तम विषय में अर्थ-अनर्थ होजाता है......अति सर्वत्र वर्ज्ययेत ....बचना चाहिए

Manjusha negi 7 जून 2013 को 5:37 pm बजे  

मैं को अभिव्यक्त करती अंतर आत्मा की आवाज

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