रेत का ढांचा समझ न लेना इक पल में न बिखर पाऊंगा
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
चाहो तो धीरज से सुन लो, मुख-भावों को या पहचानो
अपनी बात बता देता हूं, मानो या कि तुम न मानो...!!
******************
जितनी बार मुझे मसलोगे उतना और निखर आऊंगा
रेत का ढांचा समझ न लेना इक पल में न बिखर पाऊंगा
इस उस की दीवारें रंगते, अखबारों में खबर छपाते
तुम काजल की कोख के जाये, मुख-मुख पे काजल पुतवाते
कलम के कारण राम राम हैं, कलम ने लिक्खा रावण मानों
( शेष फ़िर )
अपनी बात बता देता हूं, मानो या कि तुम न मानो...!!
******************
जितनी बार मुझे मसलोगे उतना और निखर आऊंगा
रेत का ढांचा समझ न लेना इक पल में न बिखर पाऊंगा
इस उस की दीवारें रंगते, अखबारों में खबर छपाते
तुम काजल की कोख के जाये, मुख-मुख पे काजल पुतवाते
कलम के कारण राम राम हैं, कलम ने लिक्खा रावण मानों
चाहो तो धीरज से सुन लो, मुख-भावों को या पहचानो
अपनी बात बता देता हूं, मानो या कि तुम न मानो...!!
( शेष फ़िर )
2 comments:
चाहो तो धीरज से सुन लो, मुख-भावों को या पहचानो
अपनी बात बता देता हूं, मानो या कि तुम न मानो
"apni baat khne ka sahi andaaz"
regards
जो जिस काबिल है उसे सम्मान और अपमान प्राप्त होता है, अच्छा लिखा है आपने !
एक टिप्पणी भेजें