लम्बी लड़ाई का शंखनाद
गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे का आमरण अनशन और उसे पूरे देश में मिल रहा व्यापक समर्थन इस बात का संकेत है कि सत्ता के गलियारे में आर्थिक लुटेरों का तिलस्मी जाल अब अभेद्य नहीं रह पायेगा. सरकार रिंद तो रिंद रहे हाथ से ज़न्नत न गयी के अंदाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का नाटक नहीं कर पायेगी. लुटेरों के इस तंत्र के खिलाफ विभिन्न मंचों से जंग तो पहले से चल रही है लेकिन अब अन्ना हजारे के अनशन के साथ उसके खिलाफ एक व्यापक जन आन्दोलन का शंखनाद हो चुका है. अब भ्रष्टाचार के प्रत्यक्ष या परोक्ष पहरुओं की आवाज़ भी लड़खड़ाने लगी है.
कितनी दिलचस्प बात है कि इधर बाबा हजारे अनशन पर बैठे और उधर चुनाव आयोग ने विधान सभा चुनाव की तैयारी में लगे पांच में से तीन राज्यों असम, पश्चिम बंगाल और तमिल नाडू में 42 .75 करोड़ रुपये ज़ब्त किये. तमिल नाडू में तो एक बस की छत से 5 .11 करोड़ जब्त किये.जाहिर है कि उससे कहीं ज्यादा राशि बाँट चुकी होगी या बनते जाने के लिए तैयार रक्खी गयी होगी. चुनाव आयोग की कोशिशों से चुनाव में पैसे के खेल में कुछ दबाव ज़रूर बना है लेकिन भारत में चुनाव अभी भी एक बड़ी पूंजी से खेले जाने वाले जुए का रूप धारण किये हुए है. यहां के मतदाता भी पैसे और प्रलोभन के आधार पर वोट दे देते हैं. कोई साधारण सामाजिक कार्यकर्त्ता तो चुनाव लड़ने की हिम्मत भी नहीं कर पाता. इसलिए सत्ता की राजनीति में वही लोग सफल हो पाते हैं जिनके दो नम्बरी व्यापारियों से संबंध होते हैं. किसी भी ईमानदार व्यक्ति के पास किसी दूसरे खिलाडी को जुआ खेलने के लिए भारी भरकम पैसे देने की क्षमता नहीं हो सकती. ग़लत धंधो का काला धन ही इस तरह के प्रयोजन में इस्तेमाल किया जाता है. उस समय देने और लेने वाले के बीच सत्ता हांथ में आने के बाद आर्थिक स्रोतों के दोहन में सहयोग का एक मौन समझौता हो चुका होता है. राजनैतिक दलों के नेता जानते हैं कि पार्टी चलने के लिए अनैतिक रास्ते अपनाने ही होंगे. सत्ता में आये तो करीबी धंधेबाजों के साथ घोटाले करने होंगे. जिस भी रास्ते से आये कोष जुटाना ही होगा. सत्ता की राजनीति पूरी तरह काले धन से संचालित और उसकी पोषक हो चुकी है. जाहिर है कि जन लोकपाल विधेयक का दस्तावेज़ वे ऐसा ही बनाने की कोशिश करेंगे जिससे जनता को लगे कि भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक हथियार बन चुका है जबकि उसकी मारक क्षमता बच्चों के गुरदेल से भी कम हो. अन्ना हजारे विधेयक का प्रारूप तैयार करने में पचास फीसदी जन भागीदारी की मांग कर रहे हैं तो यह उन्हें कैसे मंज़ूर हो.
हाल के दिनों में बाबा रामदेव, गोविन्दाचार्य, अन्ना हजारे, किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश जैसे व्यापक जन समर्थन वाले समाजसेवियों का एक ऐसा मंच तैयार हुआ है जो मौजूदा व्यवस्था की विकृतियों को बारीकी से समझ रहा है और एक आमूल परिवर्तन की लड़ाई छेड़ने को बेचैन है. निश्चित रूप से यह एक लम्बी लड़ाई की शुरूआत भर है. इसका नतीजा सामने आने में कितना वक़्त लगेगा इस बीच कौन-कौन से मोड़ आयेंगे.....कितनी शहादतें देनी होंगी अभी कहना मुश्किल है लेकिन इतना तय है मौजूदा व्यवस्था की जड़ों पर प्रहार शुरू हो चुका है और उसकी उल्टी गिनती प्रारंभ हो चुकी है. उसी की अलामत है जंतर-मंतर के पास बाबा हजारे का आमरण अनशन.
----देवेंद्र गौतम
3 comments:
बहुत सुन्दर और सार्थक , अच्छा लगा पढ़कर !
आपने प्रब्लेस का मान बढाया है, बधाईयाँ !
अच्छा लिखा है आपने !
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