मनोहर बिल्लोरे की कविता : उगने को है
रविवार, 21 अगस्त 2011
साभार: धर्म सिंह जी के ब्लाग से |
पिचकी-दचकी मैली सी बटलोई में
खदबदा रहे दाल-चावल, टकराते
पक रहे साथ-साथ,
उछल रहा फेन, उबल रहा पानी
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हवा घूम रही साथ लिये, कहीं,
खिचड़ी की सुगंध की वाष्प
ईधन से उधर
स्वच्छंद भड़काती भूख
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तो कहीं आटे की लोईयों पर
पर पड़ रही हथेलियों की थाप
लगभग गोल आकार पा, सिंक रहीं
जर्जर तवे पर मोटी-सोंटी रोटियां
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दो चार साथ जायेंगी
गमछे में लिपट, काम पर
जारी है मजूरी पर जाने की
स्फूर्त तैयारी
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दातून है किसी मुंह में
ईधर-उधर टहलती हुई
किसी हाथ में है डिब्बा
सिर पर उड़ेलता पानी
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दूर कहीं निर्जन से लौटता
होकर फारिग, आ रहा,
बेरंग डिब्बा थामे कोई हाथ
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आवाजें... आवाजें... आवाजें
जोर-शोर की, आत्मीय,
छटपटाहट से भरी आवाजें...
प्रदूषक शोर नहीं कहीं
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पड़ोस के निर्माणाधीन भवन का
आंगन... छेड़-छाड़, बतकहियां
मजाक, हॅंसी-ठट्ठा, उत्साह और
उमंग की तरंग,
मिली-घली हवा में...
आवाजें...
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जारी है,
एक और कलरव
सुबह-सुबह...
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देर से सोकर,
उठने वाला देर से
पैदाईशी अलाल, कामटालू
‘मैं’- उठ गया आज जल्दी
आलस्य, उदासी और अवसाद से
भिड़, परास्त कर उन्हें, कुछ
कर गुजरने की, जाग रही है
इच्छा, टहलते, उबासी लेते,
आंखें मीड़ते
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लाल, बड़ा गोला
सूरज का, आकाश में
उठा आ रहा
ऊपर और ऊपर...
कविता: मनोहर बिल्लोरे
1225,जे.पी. नगर,अधारताल
जबलपुर, फ़ोन:-08982175385
कविता: मनोहर बिल्लोरे
1225,जे.पी. नगर,अधारताल
जबलपुर, फ़ोन:-08982175385
2 comments:
सशक्त बिंबों से सधी हुई सुंदर कविता.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.आपको कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
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