बूढी आँखों में अश्कबारी है
रविवार, 28 अगस्त 2011
बूढी आँखों में अश्कबारी है
उसके बेटों में जंग जारी है
हक हुनर को अब मैं दिलाऊँगा
मैंने किस्मत नयी संवारी है
चश्मे -ए-बद दूर दूर रहते हैं
माँ ने मेरी नज़र उतारी है
उम्र - ए - नाजां ग़ज़ब है ऐसेउसके बेटों में जंग जारी है
हक हुनर को अब मैं दिलाऊँगा
मैंने किस्मत नयी संवारी है
चश्मे -ए-बद दूर दूर रहते हैं
माँ ने मेरी नज़र उतारी है
बस यही इश्क़ की बीमारी है
मौत टाली है उसकी जान लेकर
जिंदगी जीत के भी हारी है
1 comments:
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....
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