शेर
मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011
(1) - रो रहा था अपने किये पर शर्मिन्दा था वो। रात लूटा था जिसे उसका अपना ही घर था वो॥(2)- रात के डर से दिन में निकलती थी वो।लूटा किसी अपने ने भरी दुपहरी चिल्लायी है वो॥
यानी प्रब्लेस, जहां न क्षेत्र की बंदिशें, न जाति और धर्म की....केवल एक बिरादरी प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ की, आईए खुलकर कीजिए बात जैसे अपने घर में करते हैं !
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2 comments:
वाह।
क्या बात है।
वाह-वाह बहुत खूब
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