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आज की बात

मंगलवार, 2 सितंबर 2025



'कलयुग' के कवि!

गिरीश पंकज

इस बार व्यंग्य के माध्यम से कुछ कहूँगा।  उस दिन स्वर्गलोक में बैठकर अनेक महान कवि आपस में चर्चा कर रहे थे। अचानक लोचनप्रसाद पांडेय ने एक प्रश्न उछाल दिया, "सुना है समय भारत देश में इक्का-दुक्का अंतरराष्ट्रीय-राष्ट्रकवि-युग-कवि पैदा हो गए हैं। यह क्या बला? इस देश में एक-से-एक बड़े कवि हुए।  पुराने समय से लेकर वर्तमान समय तक। किसी को युगकवि नहीं कहा गया।"  पाण्डेय जी की बात सुनकर 'सरस्वती' जैसी पत्रिका के तीन बार संपादक रह चुके मास्टरजी उर्फ़ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने मुस्कुराते हुए कहा, "आजकल कलयुग चल रहा है न! तो कलयुग में जो न हो, वह थोड़ा है।  कलयुग आज का युग है। तो इस युग का कवि कोई भी हो सकता है।  जो अपने आप को युगकवि, राष्ट्रकवि, अंतरराष्ट्रीय कहे, वह कलयुग का ही कवि हो सकता है। सतयुग का नहीं।" उन सब की बातें सुनते हुए गंभीर कविता के कवि के रूप में चर्चित रहे कबीर ने कहा, "भाइयो! इन सब बातों की चर्चा करके समय नष्ट करने का कोई मतलब नहीं है। यह आत्ममुग्धता का दौर है। यहां हर कवि को आजादी है कि वह अपने साथ चाहे जो कुछ भी विशेषण लगा ले। इस समय अपने देश में तरह-तरह के विशेषणधारी बनाम इच्छाधारी कवि पाए जाते हैं। कोई 'राष्ट्रीय' कवि है, कोई 'अंतरराष्ट्रीय' कवि है,कोई 'महाकवि' है। कोई 'राजकीय' कवि भी। जिसका जो मन हो, वह लगा सकता है। ऐसा करने से उसकी आत्मा को तृप्ति मिलती है, तो करने में कोई बुराई नहीं।  लेकिन ऐसा करने से उसकी आलोचना तो होती है।" पीछे बैठे शरद जोशी और हरिशंकर परसाई वार्तालाप सुनकर मुस्करा रहे थे। शरद जोशी बोल पड़े, "अब आलोचना की परवाह कौन करता है? आलोचना को लोग 'आलू-चना' समझने लगे हैं। सामने आते ही उसे हजम कर जाते हैं। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।" इतना सुनना था कि पंडित मुकुटधर पांडेय बोल पड़े, "लेकिन हमें तो फर्क पड़ता है कि आखिर यह क्या हो रहा है। हमने भी कविताएँ की हैं। हमने एक दौर की कविताओं को 'छायावाद' का नाम दिया। हमने कभी इस बात की परवाह नहीं की लोग हमें युगकवि कहें। लेकिन अब तो कमाल हो रहा है। यह कैसा दौर है?"  बख्शी जी ने कहा, "यह घोर कलजुग है भाई! गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है न कलयुग केवल नाम अधारा। मैं कहूंगा, कलयुग केवल विशेषण और जुगाड़ अधारा। यहां आपको हिट होना है, तो सिर्फ प्रतिभा से काम नहीं चलेगा। जोड़-तोड़ भी करनी होगी। मंत्रियों से सेटिंग करनी होगी। अफसरों को पटाना होगा। जो भी बोलने की कला के साथ इस कला में माहिर हो जाएगा, वही इस दौर का महान कवि होगा।" इस बात से सभी सहमत दिखाई दिए। बातचीत चल रही थी कि दूर से कालिदास,कबीर, तुलसी,रहीम, रसखान टहलते हुए दिखाई दिए, तो पांडेय ने कहा, "देखो, इन कवियों को। इन्होंने भी कभी अपने को युगकवि, महाकवि नहीं कहा। समाज ने इन्हें महान कवि कहा। महानता यह होती है। कोई भी अच्छा कवि अपने साथ ऐसा कोई भी विशेषण नहीं लगाता, जिससे लोग उसका मजाक उडाने लगे। न राष्ट्र का, न युग का, लेकिन क्या करें, कलयुग है न, सब चलता है।" तब तक  मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी और दिनकर भी पहुँच गए।  उन्होंने पूछा, "लगता है आप लोग किसी गंभीर चर्चा में व्यस्त हैं?" इस पर बख्शी जी ने मुस्कुरा कर कहा, "धरती पर जो कुछ हो रहा है, उसको लेकर हम लोग वार्तालाप कर रहे हैं। हम सब केवल बातचीत ही कर सकते हैं। गलत को सुधारने अब वापस तो नहीं जा सकते।" इतनी बातचीत हुई थी, तभी अचानक बादल गरजने लगे। और... और मेरी नींद खुल गई। मैं मुस्करा पड़ा, ''ओह! तो मैं सपना देख रहा था?"

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