यानी प्रब्लेस, जहां न क्षेत्र की बंदिशें, न जाति और धर्म की....केवल एक बिरादरी प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ की, आईए खुलकर कीजिए बात जैसे अपने घर में करते हैं !
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4 comments:
बहुत उम्दा काव्य पाठ,,,आभार पंकज जी,,
recent post : बस्तर-बाला,,,
वाह...।
यू ट्यूब पर आपको सुन कर अच्छा लगा गिरीश पंकज जी !
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जीने का सामान मिल गया
पत्थर में भगवान मिल गया
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सुबह मुहब्बत , शाम मुहब्बत
अपना तो है काम मुहब्बत
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तुम जाओ तीरथ को यारों
अपने चारों धाम मुहब्बत
आऽऽहा हाऽऽऽ हऽऽऽ !
क्या बात है गिरीश भाईजी !
बहुत बढ़िया !
दोनों ग़ज़लें शानदार हैं ...
पिछली जनवरी में आपको हमारे यहां रूबरू सुनने के साल भर बाद
आज आपको पढ़ते हुए देख कर बहुत अच्छा लग रहा है ।
बहुत बहुत शुभकामनाएं !
आजकल ब्लॉग पर क्यों नहीं ?
... न हमारे न अपने ही !!
शुभकामनाएं
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